सूर्य पुत्र कर्ण का सामर्थ्य और शौर्य गाथा








सूर्य पुत्र कर्ण का सामर्थ्य और शौर्य गाथा महऋषि वेद व्यास जी द्वारा रचित संक्षिप्त महाभारत से कुछ इस प्रकार है 

१.युधिष्ठिर ने खुद कहा है कर्ण विश्वव्यख्यात महारथी और संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर है (कर्ण पर्व पेज ४८)

२. अर्जुन कहते है हे महा वाहे श्री कृष्ण कर्ण द्वारा चलाए गए भार्गव अस्त्र का नाश इस युद्ध में किसी तरह नहीं किया जा सकता तब श्री कृष्ण अर्जुन को वहां से युधिष्ठिर के खेमे में ले आए उनका उद्देश्य था जब कर्ण युद्ध में थक जाएगा तब अर्जुन उनसे युद्ध करने में सक्षम हो जाएंगे (कर्ण पर्व पेज ४७)

3. युधिष्ठिर कहते है है अर्जुन कृष्ण तुम्हारे रथ के सारथी है तुम्हारा रथ अग्नि देव की भेट है , तुम्हारे पास गांडीव जैसा धनुष है तुम्हारे पास महान दिव्य अस्त्र शस्त्र है फिर भी तुम कर्ण से डर कर भाग आए धिक्कार है तुम्हारी वीरता पर (कर्ण पर्व पेज न.५०)

4. अर्जुन कहते है सात्यकि और दृष्टदुमन मेरे रथ के पहिए की रक्षा करे तथा राजकुमार युद्धा मन्यू और उत्तमौजा मेरे पृष्ठ भाग की रक्षा करे फिर में कर्ण के साथ युद्ध करूंगा (कर्ण पर्व पेज न.५०)

5.कर्ण पर्व में यह भी कहा गया है कि कर्ण ने गुरु परशुराम के दिए हुए दिव्य वाणों से अर्जुन का ब्रह्मास्त्र काट दिया था जिसे मन की शक्ति से प्रकट किया जाता था (कर्ण पर्व पेज न.७९)

भीम सेन ने कर्ण को टक्कर अवश्य दी थी क्योंकि कर्ण ने उन पर दिव्यास्त्रों का प्रयोग नहीं किया इसके अलावा माता कुंती को उन्होंने अर्जुन के अतिरिक्त किसी अन्य पाण्डव को न मारने का वचन दिया था इसलिए वह अन्य किसी पर अपने पूर्ण वल का प्रयोग नहीं कर रहे थे और न ही कर्ण विराट युद्ध में अपने पूर्ण वल से युद्ध लड़े क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि पाण्डवों का अज्ञात वास भंग हो क्योंकि कर्ण के वाणों को रोकने के लिए अर्जुन को पशुपतात अस्त्र का प्रयोग करना पड़ सकता था जो कि सिर्फ़ अर्जुन पर ही था इस कारण अर्जुन को ब्रह्मला (उर्वशी के श्राप के कारण अर्जुनका नृतकी रूप) उस समय भी पहचाना जा सकता था तत्पश्चात पांडवों का अज्ञात वास भंग हो जाता और पांडवों को पुनः 12 वर्ष का वनवास और पुनः एक वर्ष का अज्ञातवास भुगतना पड़ता इसलिए विराट युद्ध से कर्ण और अर्जुन के सामर्थ्य का पता नहीं लगाया जा सकता क्योंकि यहां कर्ण ने मनुष्यता और धर्म निति का अद्वितीय परिचय दिया था इसके अतिरिक्त गंधर्वों से कर्ण का कोई सुनियोजित युद्ध कभी हुआ ही नही गंधर्वों ने उस वक्त दुर्योधन के शिविर पर आक्रमण किया जब दुर्योधन और कर्ण मनोरंजन के उद्देश्य से जंगल में नि:शस्त्र शिविर लगाए हुए थे, जब गंधर्वों ने दुर्योधन के शिविर पर आक्रमण कर दिया और दुर्योधन को बंदी बना लिया था तब कर्ण अपने मित्र की रक्षा हेतु अस्त्र शस्त्र लेने के लिए अपने सेन्य शिविर की और दौड़े किंतु ईर्ष्यालु प्रवृत्ति के लोगों ने स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होड़ में कर्ण को भगौड़ा करार दिया जबकि उन्हें इस बात का ज्ञान होना चाहिए उस वक्त कर्ण ने इंद्र को अपने दिव्य कवच कुण्डल दान नहीं दिए थे और ऐसा कोई अस्त्र नहीं था जो कर्ण के दिव्य कवच को भेदने में सक्षम हो तो फ़िर गंधर्वों से भला दिग्विजयी् सूर्यपुत्र कर्ण क्यों भयभीत होते यदि वास्तव में कर्ण का सामर्थ्य और शौर्य जानना है तो महऋषि वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत पुराण के कर्ण पर्व में महाभारत युद्ध के 17 वे दिन का वृतांत पढ़िए और जानिए कि दिव्य कवच कुंडल के बिना भी उस सूर्य पुत्र कर्ण का पराक्रम कितना विकट था

नियति के वशीभूत हो कर कर्ण ने वचन वश अधर्म का साथ दिया इसीलिए उनकी नि: शस्त्र अवस्था में हार हुई क्योंकि जो धर्म विरुद्ध है वो कितना भी दिग्गज़ क्यों न हो कभी विजय नहीं हो सकता अन्यथाा कर्ण उस काल के धुरंधर योद्धा थे इसीलिए कहते है सदैव अपना पक्ष धर्म के हित में चुने  

अर्जुन इसीलिए महान हैं क्योंकि भगवान् श्री कृष्ण उनके साथ थे और सूर्य पुत्र कर्ण श्रेष्ठ होते हुए भी इसीलिए महान् नहीं कहलाए क्योंकि वो दुर्योधन के साथ थे इसीलिए संगत हमेशा सोच समझ कर करें 

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