कर्णवंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपूत ) समुदाय की पहिचान


कर्णवंशीयों की पहिचान पुराणों के मुताबिक कुछ इस प्रकार हैं 

(१.) कर्णवंशियों की प्रथम पहिचान के संबंध में विष्णु पुराण में कहा गया है 

           उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् |
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ||

अर्थात- उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक इस विशाल भू भाग को वर्षों से भारत के नाम से जाना जाता है और यहां निवास करने वाली मनु संततियों को भारतीय कहा जाता है अर्थात हमारी प्रथम पहिचान यह है कि हम भारतीय है

(२.) दृत्तीय पहिचान बृहस्पति आगम से जो की विशालाक्ष शिव द्वारा रचित है 

हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥

अर्थात् - हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।

अतः हिंदू शब्द के लिए बृहस्पति संहिता में लिखा है 

ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।

अर्थात् - ॐकार’ जिसका मूल मंत्र है और पुनर्जन्म को जो बड़ी दृढ़ता से मानता है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है तथा हिंसा की जो निंदा करता है, वह हिन्दू है। अर्थात हम सनातनी हिन्दू है 

(३.) कर्णवंशियों की तृतीय पहिचान भगवत गीता के १८ वे अध्याय के ४३ वे श्लोक से कुछ इस प्रकार है 

“शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्॥”

अर्थात् – दान करना, युद्ध भूमि से न भागना, धैर्य रखना, वीर होना, दक्ष होना, तेज एवं राजा होने का स्वभाव। यही सब क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं।

अर्थात कर्णवंशियो की रक्त धमनियों में बहने वाला रक्त एक क्षत्रिय कुल का है क्योंकि यह महारथी सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण के वंशज है 

(४.) कर्णवंशियों की चौथी पहिचान मत्स्य पुराण के २६ वे अध्याय के ४२ वे श्लोक से कुछ इस प्रकार है 

आसीद वृहदथाच्चेव, विश्वजिज्जन्मेजय:
दाया दस्त्त्य चाडगोवै तस्माद कर्नोअभव नृप:
कर्णस्य वृषसेनस्तु(वृष्यकेतु), प्रथुसेनस्तथात्मज:
एतेअंगस्थाज्मजा: सर्वे राजान कीर्तिमान
वंश तद् कर्णस्य नाम प्रचलित: कर्णवंशी यत्र सन्ततिः

अर्थात कर्णवंशी चंद्रवंश की ही एक शाखा है जो कि सूर्य पुत्र कर्ण से शुरू हुई है इसकी पुष्टि मत्स्य पुराण करता है 

अंतिम निष्कर्षण 

अर्थात कुल की पहिचान तो सिर्फ़ इसलिए जरूरी है ताकि धर्म युद्ध में दिए गए योद्धाओं के योगदान को कुल के आधार पर स्मरण रखा जा सके अन्यथा कर्णवंशियों की र्सर्वत्र पहिचान तो सिर्फ़ एक ही है वो है सनातनी हिंदू

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