कर्णवंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपूतों) का ध्वज और प्रतीक चिन्ह
प्रत्येक राज वंश का एक परचम होता था जिसका मान सम्मान उस राजवंश की प्रजा के लिए अपने प्राणों से भी बढ़कर होता था
इसीलिए युद्ध का नृतत्व करते समय हाथों में योद्धा अपने वंश का परचम थामे रहते थे वो इसलिए ताकी उनकी उनकी प्रजा को यह आभास होता रहें कि जो योद्धा समरांगण में अपने प्राणों को हथेली पर ले कर लड़ रहा है वो प्रजा सहित सम्मत राज वंश के मान सम्मान के लिए लड़ रहा है केवल अपने लिए नहीं
इसीलिए किसी भी राजवंश की प्रजा कभी भी अपने राजवंश के योद्धाओं का विरोध नही करती थी क्योंकि उन्हें यह पता था कि योद्धाओं से ही समस्त राजवंश का स्वाभिमान हैं
इसी उद्देश्य को मद्दे नज़र रखते हुए कर्णवंश का परचम डिजाइन किया गया है ताकि कुल के सम्मान हेतु युवाओं सहित समाज के समस्त जन मानस में आदर की भावना का संचार किया जा सके
परचम कुल /वंश/समुदाय की स्पष्ट पहिचान प्रदर्शित करता है इसलिए परचम का लोगो अर्थात् प्रतीक चिन्ह भ्रम रहित और स्पष्ट रखा गया है
इसलिए कर्णवंशी क्षत्रिय वंश का परचम और प्रतीक चिन्ह - केसरिया ( लाल ) ध्वज पर सूर्य की आकृति के बीचों बीच गर्भ स्थान पर सूर्य पुत्र कर्ण लिखा हुआ है
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