कर्णबंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपूतों ) के ऐतिहासिक पवित्र तीर्थ स्थल :-
1. कर्ण खार ( कुंतल पुर ) - महाभारत का कुंतल पुर वर्तमान में मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले के कुतवार ग्राम में स्थित है मान्यता है कि कर्ण खार नामक स्थान पर ही माता कुंती को भगवान सूर्य नारायण से वरदान स्वरूप पुत्र रूप में कर्ण की प्राप्ति हुई थी
2. देवड़ा गांव का कर्ण मंदिर - उत्तरा खण्ड के उत्तरकाशी जिले के देवड़ा गांव में स्थित सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण का मंदिर
3. कोणार्क का सूर्य मन्दिर- कोणार्क का सूर्य मन्दिर भारत के ओडिसा के पुरी ज़िले में समुद्र तट पर पुरी शहर से लगभग 35 km ( 22 मील ) उत्तर पूर्व कोणार्क के मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर स्थिति हैं , सर्व प्रथम द्वापुर युग में इस मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण और माता जान्मती के पुत्र सांभ ने कोणार्क के इस सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था यह मंदिर कई बार विदेशी आक्रांताओं द्वारा क्षतिग्रस्त किया जा चुका है और कई बार इसका पुनः निर्माण किया गया है वर्तमान में जो मंदिर है उसका श्रेय 13 वी शताब्दी ( वर्ष 1250) में पूर्वी गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव को दिया जाता है , सन 1984 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी है , इसके विषय में कर्ण समुदाय के लोगों की मान्यता है कि इंद्र देव ने सूर्य पुत्र कर्ण के दिव्य कवच कुण्डल कोणार्क के सूर्य मंदिर में ही छुपा दिए थे जो कि कल्कि अवतार तक यहां शुरक्षित रखें हुए है , मान्यता है कि भगवान विष्णु कलयुग में एक ब्रहामण के घर में एक सामान्य मनुष्य के रूप में कल्कि अवतार लेंगे उसके बाद कल्कि भगवान कोणार्क के सूर्य मंदिर जाएंगे और वहां से सूर्य भगवान की स्तुति कर सूर्य पुत्र कर्ण के दिव्य कवच कुण्डल को धारण करेगें तत्पश्चात् वो जग्गनाथ पुरी जाएंगे और भगवान श्री कृष्ण के ह्रदय को स्पर्श कर दिव्य शक्तियों को अर्जित करेगें तत्पश्चात् वो महेंद्र गिरि पर्वत जाएंगे और भगवान परशुराम को गुरू रूप में पा कर उनसे दिव्यास्त्रों का ज्ञान लेंगे और स्वयं को सर्व दिव्य शक्ति संपन्न करेगें और अंत में भगवान कल्कि कलयुग के महा मायावी राक्षस कली का अंत करेगें
4. कर्णवास में स्थिति सूर्य पुत्र कर्ण का मंदिर - जो की उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में डिवाई के निकट गंगा तट पर स्थिति एक ऐतिहासिक गांव कर्णवास में स्थिति है , मान्यता है की दानवीर राजा कर्ण जिस शिला पर बैठ कर सबा मन सोना दान करते थे वो यही इस मंदिर प्रांगण में मौजूद है और माता कल्याणी का मंदिर भी यहीं मौजूद है माता की कृपा से प्राप्त सोने से दीन दुखियों का कल्याण होता था जिस कारण जगत जननी मैया को कल्याणी कह कर पूजा जाने लगा
5.कर्ण प्रयाग -कर्णप्रयाग उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक कस्बा है। यह अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर स्थित है। पिण्डर का एक नाम कर्ण गंगा भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्ण प्रयाग पडा। यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय है। यह मन्दिर सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण को समर्पित है माना जाता है यही पर स्थिति कर्ण शिला पर भगवान श्री कृष्ण ने अपनी हथेली का संतुलन बनाएं रखते हुए अपने हांथ की हथेली पर ही कर्ण का दाह संस्कार किया था
6. तुलसीबाड़ी मंदिर - तापी नदी के इस घाट पर सूर्य पुत्र कर्ण की अस्थियों का विसर्जन किया गया था , भगवान श्री कृष्ण ने अपने लघु रूप में आकर मात्र एक इंच भूमि का उपयोग कर कर्ण की अस्थियों को इसी घाट से तापी नदी में प्रवाहित किया था क्योंकी संपूर्ण प्रथ्वी पर केवल यही एक इंच भूमि क्वारी भूमि थी अर्थात् जहां कोई पाप नहीं हुआ था , यह स्थान गुजरात के सूरत शहर के बराछा इलाके के तुलसी बाड़ी मंदिर के रूप में जाना जाता है
7. करेड़ी वाली माता का मंदिर - माता कनकेश्वरी जी का मंदिर जो कि उज्जैन से 60 km दूर तराना तहसील के करेडी गांव में है , यहीं पर सूर्य पुत्र कर्ण ने देवी की तपस्या कर सबा मन सोना दान करने का वरदान प्राप्त किया था कनक दायित्री होने के कारण मां को कनकेश्वरी नाम से पुकारा जाने लगा
8. शक्ति पीठ मां गढ़ कालिका मंदिर एवं काल भैरव मंदिर - प्राचीन राज्य अवंतिका जो कि क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है जिसे वर्तमान में उज्जैन नगर के नाम से जाना जाता है जहां देवों के देव महादेव का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग बिराजमान है
Comments
Post a Comment