कर्णवंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपुतों ) की कुलदेवी महाकाली मां कालिका

स्वप्न दे कर आई मां वैष्णो देवी की दिव्य मूर्तियां ग्राम लावन का पुरा 

कर्णवंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपूतों) की कुलदेवी माता महाकाली कालिका देवी 

कर्ण राजपूत कुलदेवी के रूप में माता महाकाली कालिका को पूजते है जो कि माता जगदम्मा महाकाली की दस महाविद्या में से ही एक है , महाकाल की काली। 'काली' का अर्थ है समय और काल। काल, जो सभी को अपने में निगल जाता है। भयानक अंधकार और श्मशान की देवी। वेद अनुसार 'समय ही आत्मा है, आत्मा ही समय है'। मां कालिका की उत्पत्ति धर्म की रक्षा और पापियों-राक्षसों का विनाश करने के लिए हुई है।काली को माता जगदम्बा की महामाया कहा गया है। मां ने सती और पार्वती के रूप में जन्म लिया था। सती रूप में ही उन्होंने 10 महाविद्याओं के माध्यम से अपने 10 जन्मों की शिव को झांकी दिखा दी थी।

नाम : माता कालिका

शस्त्र : त्रिशूल और तलवार

वार : शुक्रवार

दिन : अमावस्या

ग्रंथ : कालिका पुराण

मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा

दुर्गा का एक रूप : माता कालिका 10 महाविद्याओं में से एक

मां काली के 4 रूप हैं- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली।

राक्षस वध : माता ने महिषासुर, चंड, मुंड, धूम्राक्ष, रक्तबीज, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों के वध किए थे।



ध्यान दे :- 

महारथी कर्ण की आराध्य देवी मां कालिका थी - मंदिर उज्जैन (गढ़ कालिका )

महारथी कर्ण की दिग्विजय यात्रा के दौरान उज्जैन से 60 km दूर सहजापुर जिले के तराना तहसील में करेड़ी गांव में दीन दुखियों के उत्थान के लिए उन्होंने अपनी आराध्य देवी कालिका की तपस्या कर प्रतिदिन सवामन सोना प्राप्त करने का वरदान प्राप्त किया वहां की स्थानीय मान्यता यह भी है कि दीन दुखियों के उत्थान की मंशा हेतु माता को प्रसन्न करने के लिए सूर्य पुत्र कर्ण ने स्वयं को खोलते हुए तेल की कढ़ाही में समर्पित कर दिया था यह देख माता प्रसन्न हो गई और साक्षात प्रकट हो गई और कर्ण पर अमृत का छिड़काव कर उन्हें बचा लिया तथा सबा मन सोना प्रति दिन प्राप्त करने का वरदान प्रदान किया 

सोना अर्थात् कनक 

कनक प्रदान करने वाली मां अर्थात् कनकेश्वरी देवी इस प्रकार करेडी गांव में कालिका माता कनकेश्वरी नाम से पूजी जाने लगी 

 उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले के डिवाई के निकट गंगा तट पर स्थित ऐतिहासिक गांव वर्तमान नाम कर्णवास में सूर्य पुत्र कर्ण सुबह स्नान के उपरान्त अपनी आराध्य देवी मां कालिका के चरणों में जल अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त कर एक शिला पर बैठ कर जनकल्याण के लिए सवामन सोना दान किया करते थे इसलिए कर्णवाश में स्थापित आराध्य देवी कालिका माता कल्याणी के नाम से प्रसिद्ध हो गई आज भी कर्णवाश में माता कल्याणी का भव्य मंदिर बना हुआ है

 प्राचीन काल में कबीलों के पलायन और प्रवास के कारण कई समुदाय के निवास स्थानो में परिर्वतन हो गया और लोग अपने जीविका अनुरूप देश के विभिन्न भागों में यत्र- तत्र वश गए

ग्वालिर स्टेट के मध्य निवासरत लोगों ने सिंध नदी के तट पर बघेली बहादुरपुर में मां कालिका देवी की स्थापना की जिसका अपना एक ऐतिहासिक महत्व है जहां आज भी ग्वालियर स्टेट के अंतर्गत आने वाली कई राजपूत जातियां कुलदेवी के रूप में शादी विवाह और बच्चे होने की की पूजा देने जाते है

महाकाली 




                                

गढ़ कालिका 

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