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कर्णवंशी क्षत्रिय ( कर्ण राजपूत ) समुदाय के अस्तित्व की प्रमाणिक पुष्टि

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  20 वी शताब्दी में कर्ण वंश का अस्तित्व  चौथी शताब्दी में भारतेंदु हरिचंद्र में कर्ण वंश के अस्तित्व का प्रमाण दूसरी शताब्दी में मुद्रा राक्षस से कर्ण वंश के अस्तित्व का प्रमाण  छठी शताब्दी में कर्ण वंश की पुष्टि राजतरंगिणी के पंचम तरंग से क्षत्रिय समाज एवं गुर्जर समाज का इतिहास इसीलिए भ्रमित हो जाता है क्योंकि गुर्जर प्रदेश पर राज करने के कारण अन्य क्षत्रिय राजाओं को कहीं कहीं गुर्जर सम्राट के नाम से संबोधित किया जैसे कि अंग राज कर्ण, अयोध्या नरेश दशरथ, छेदी नरेश शिशुपाल, मद्रराज शल्य इसी प्रकार कर्ण वंश के राजाओं को गुर्जर प्रदेश पर राज करने की वज़ह से कही कही गुर्जर सम्राट भी कहा गया है हालांकि गुर्जरों का भी अपने आप में एक स्वाभिमानी इतिहास रहा है और यह भी एक मार्शल कौम है  

सूर्य पुत्र कर्ण का सामर्थ्य और शौर्य गाथा

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सूर्य पुत्र कर्ण का सामर्थ्य और शौर्य गाथा महऋषि वेद व्यास जी द्वारा रचित संक्षिप्त महाभारत से कुछ इस प्रकार है  १.युधिष्ठिर ने खुद कहा है कर्ण विश्वव्यख्यात महारथी और संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर है (कर्ण पर्व पेज ४८) २. अर्जुन कहते है हे महा वाहे श्री कृष्ण कर्ण द्वारा चलाए गए भार्गव अस्त्र का नाश इस युद्ध में किसी तरह नहीं किया जा सकता तब श्री कृष्ण अर्जुन को वहां से युधिष्ठिर के खेमे में ले आए उनका उद्देश्य था जब कर्ण युद्ध में थक जाएगा तब अर्जुन उनसे युद्ध करने में सक्षम हो जाएंगे (कर्ण पर्व पेज ४७) 3. युधिष्ठिर कहते है है अर्जुन कृष्ण तुम्हारे रथ के सारथी है तुम्हारा रथ अग्नि देव की भेट है , तुम्हारे पास गांडीव जैसा धनुष है तुम्हारे पास महान दिव्य अस्त्र शस्त्र है फिर भी तुम कर्ण से डर कर भाग आए धिक्कार है तुम्हारी वीरता पर (कर्ण पर्व पेज न.५०) 4. अर्जुन कहते है सात्यकि और दृष्टदुमन मेरे रथ के पहिए की रक्षा करे तथा राजकुमार युद्धा मन्यू और उत्तमौजा मेरे पृष्ठ भाग की रक्षा करे फिर में कर्ण के साथ युद्ध करूंगा (कर्ण पर्व पेज न.५०) 5.कर्ण पर्व में यह भी कहा गया है कि कर्ण ने गुर...

सूर्य पुत्र कर्ण के व्यक्तित्व की व्याख्या भगवत गीता के अनुसार

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   भगवत गीता के १० वे अध्याय के ८ वे श्लोक के अनुसार   अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते। इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः।। अर्थात्   अहं सर्वस्य प्रभवः ' -- मानस, नादज, बिन्दुज, उद्भिज्ज, जरायुज, अण्डज, स्वेदज अर्थात् जड-चेतन, स्थावर-जङ्गम यावन्मात्र जितने प्राणी होते हैं, उन सबकी उत्पत्ति के मूल में परम पिता परमेश्वर के रूप में मैं ही हूँ यहां  प्रभव का तात्पर्य है कि मैं सबका 'अभिन्न-निमित्तोपादान कारण' हूँ अर्थात् स्वयं मैं ही सृष्टि रूप से प्रकट हुआ हूँ।  ' मत्तः सर्वं प्रवर्तते ' -- संसार में उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय, पालन, संरक्षण आदि जितनी भी चेष्टाएँ होती हैं, जितने भी कार्य होते हैं, वे सब मेरेसे ही होते हैं। मूलमें उनको सत्ता-स्फूर्ति आदि जो कुछ मिलता है, वह सब मेरे से ही मिलता है। जैसे बिजली की शक्ति से सब कार्य होते हैं, ऐसे ही संसार में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका मूल कारण मैं ही हूँ। ' अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते' -- कहने का तात्पर्य है कि साधक की दृष्टि प्राणि मात्र के भाव, आचरण, क्रिया आदिकी तरफ न जाकर उन सब...

कर्णवंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपूत ) समुदाय की पहिचान

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कर्णवंशीयों की पहिचान पुराणों के मुताबिक कुछ इस प्रकार हैं  (१.) कर्णवंशियों की प्रथम पहिचान के संबंध में विष्णु पुराण में कहा गया है             उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् | वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः || अर्थात- उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक इस विशाल भू भाग को वर्षों से भारत के नाम से जाना जाता है और यहां निवास करने वाली मनु संततियों को भारतीय कहा जाता है अर्थात हमारी प्रथम पहिचान यह है कि हम भारतीय है (२.) दृत्तीय पहिचान बृहस्पति आगम से जो की विशालाक्ष शिव द्वारा रचित है  हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥ अर्थात् - हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। अतः हिंदू शब्द के लिए बृहस्पति संहिता में लिखा है  ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय: गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:। हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:। अर्थात् - ॐकार’ जिसका मूल मंत्र है और पुनर्जन्म को जो बड़ी दृढ़ता से ...

कर्णवंशी क्षत्रिय ( कर्ण राजपूत ) समुदाय का ध्येय वाक्य

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कर्णवंशी क्षत्रिय ( कर्ण राजपूत ) समुदाय का ध्येय वाक्य -" कर्ण ही हमारा स्वाभिमान है "  जो कि सर्व प्रथम ४ अप्रैल २०२१ के दिन रविवार को सतेंद्र सिंह कर्ण S/o श्रद्धेय मुन्नी देवी रामगोपाल कर्ण जी के द्वारा दिया गया है उनका मानना है कर्ण हमारा शरीर है किंतु श्री कृष्ण हमारी आत्मा है

मनु स्मृति के अनुसार सूत शब्द व्युत्पत्ति की व्याख्या

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क्षत्रियाद्विप्रकन्यायां सूतो भवति जातितः। वैश्यान्मागधवैदेहौ राजविप्राङ्गनासुतौ।    ( मनु स्मृति के 10 वें अध्याय का 11वां श्‍लोक ) अर्थात् मनु स्मृति से हमें ज्ञात होता है कि 'सूत' शब्द का प्रयोग उन संतानों के लिए होता था, जो ब्राह्मण कन्या से क्षत्रिय पिता द्वारा उत्पन्न हों। महाभारत पुराण के भीष्म पर्व के 30 वे अध्याय के अनुसार भी महारथी कर्ण सूत पुत्र नहीं थे पालक पिता अधीरथ होने के कारण उन्हें सूत पुत्र कहा जाता था कौन्तेयस्त्वं न राधेयो न तवाधिरथः पिता। सूर्यजस्त्वं महाबाहो विदितो नारदान्मया।। ( भीष्म पर्व ३० वा अध्याय) श्रीकृष्णस्तोत्रं इन्द्ररचितम् - गोर्वधन लीला के समय प्रभु श्री कृष्ण के क्रोध से बचने के लिए और प्रभु श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए देवराज इंद्र ने भक्ति भाव से श्रीकृष्णस्तोत्रं की रचना की जिसे सुन कर प्रभु कृष्ण ने इंद्र की सारी भूल को माफ़ कर दिया था तथा प्रभु श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र को यह वरदान दिया कि जो मनुष्य इस स्त्रोत का सच्चे मन से भक्ति भाव से पाठ व स्तुति करेगा उसका में सदैव कल्याण करूंगा  " देवराज इंद्...

कर्णवंशी क्षत्रिय ( कर्ण राजपूतों) के यज्ञोपवीत विधि विधान

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कर्णवंशी क्षत्रिय दुर्गा यज्ञोपवीत धारण करने वाले चंद्रवंशी क्षत्रिय है जो कि मुख्यत: 6 लड़ियों वाला यज्ञोपवीत धारण करते है            यज्ञोपवीत धारण करने का मंत्र यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।                  यज्ञोपवीत उतारने का मंत्र एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।