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Showing posts from April, 2023

कर्णवंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपूतों) के कुलगुरू भगवान परशुराम

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कर्ण वंश के कुलगुरु :-  भगवन परशुराम   अन्य नाम-।      जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये 'जामदग्न्य' भी कहे जाते हैं। अवतार -     विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार वंश-गोत्र -    भृगुवंश पिता -।           जमदग्नि माता -            रेणुका जन्म विवरण -    इनका जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। धर्म-संप्रदाय :- हिंदू धर्म परिजन -       रुमण्वान, सुषेण, वसु, विश्वावसु (सभी भाई) विद्या पारंगत - धनुष-बाण, परशु अन्य विवरण - परशुराम शिव के परम भक्त थे। संबंधित पर्व - अक्षय तृतीया (गुरु जयंती ) अन्य जानकारी-  इनका नाम तो राम था, किन्तु शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये 'परशुराम' कहलाते थे। शिष्य - गंगा पुत्र भीष्म , द्रोणाचार्य, सूर्य पुत्र कर्ण

कर्णवंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपुतों ) की कुलदेवी महाकाली मां कालिका

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स्वप्न दे कर आई मां वैष्णो देवी की दिव्य मूर्तियां ग्राम लावन का पुरा  कर्णवंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपूतों) की कुलदेवी माता महाकाली कालिका देवी  कर्ण राजपूत कुलदेवी के रूप में माता महाकाली कालिका को पूजते है जो कि माता जगदम्मा महाकाली की दस महाविद्या में से ही एक है , महाकाल की काली। 'काली' का अर्थ है समय और काल। काल, जो सभी को अपने में निगल जाता है। भयानक अंधकार और श्मशान की देवी। वेद अनुसार 'समय ही आत्मा है, आत्मा ही समय है'। मां कालिका की उत्पत्ति धर्म की रक्षा और पापियों-राक्षसों का विनाश करने के लिए हुई है।काली को माता जगदम्बा की महामाया कहा गया है। मां ने सती और पार्वती के रूप में जन्म लिया था। सती रूप में ही उन्होंने 10 महाविद्याओं के माध्यम से अपने 10 जन्मों की शिव को झांकी दिखा दी थी। नाम : माता कालिका शस्त्र : त्रिशूल और तलवार वार : शुक्रवार दिन : अमावस्या ग्रंथ : कालिका पुराण मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा दुर्गा का एक रूप : माता कालिका 10 महाविद्याओं में से एक मां काली के 4 रूप हैं- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली। राक्षस वध ...

कर्णवंशी क्षत्रिय जाति की उत्पत्ति ( कर्ण राजपूत समाज का इतिहास )

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मत्स्य पुराण के २६ वे अध्याय का ४२ वा श्लोक पेज न.२२७- २२८ कर्ण राजपूत वंश कि उत्पत्ति:- कर्ण राजपूत वंश कि  उत्पत्ति महाभारत के महान योद्धा दानवीर कर्ण से हुई है , दानवीर कर्ण का जन्म महऋषि दुर्वाषा के दिए हुए वरदान स्वरूप माता कुंती से भगबान सूर्य के आशीर्वाद से हुआ इसलिए कर्ण को सूर्य पुत्र कर्ण कहा जाता है , बचपन से ही कर्ण के पास भगवान सूर्य नारायण का दिया हुआ दिव्य कवच कुंडल था ,जिसे सूर्य पुत्र कर्ण ने देवराज इंद्र को धर्म कि रक्षा हेतु दान में दे दिया था कर्ण कि परिवरिश अधिरथ ने कि थी और कर्ण को राधे मा का स्नेह मिला था इसलिए कर्ण को राधेय कर्ण भी कहा जाता है  सूर्य पुत्र कर्ण पांडवो के ज्येष्ठ भ्राता और  कुरु युवराज दुर्योधन के मित्र थे इसलिए कुरु युवराज दुर्योधन ने कर्ण को अंग देश का राजा घोषित करने का निर्णय लिया उस समय अंग देश के राजा विश्वजीत की कोई संतान न होने के कारण अंग देश हस्तिनापुर के शरंक्षण में था कुरुराजकुमार कि घोषणा के बाद कुरुपती ने सूर्य पुत्र कर्ण को महाराज विश्वजीत का उत्तराधिकारी बनाकर अंग देश का सम्राट नियुक्त कर दिया और इस प्रकार सूर्य पुत्...