कर्णवंशी क्षत्रिय (कर्ण राजपूत ) समुदाय की पहिचान

कर्णवंशीयों की पहिचान पुराणों के मुताबिक कुछ इस प्रकार हैं (१.) कर्णवंशियों की प्रथम पहिचान के संबंध में विष्णु पुराण में कहा गया है उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् | वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः || अर्थात- उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक इस विशाल भू भाग को वर्षों से भारत के नाम से जाना जाता है और यहां निवास करने वाली मनु संततियों को भारतीय कहा जाता है अर्थात हमारी प्रथम पहिचान यह है कि हम भारतीय है (२.) दृत्तीय पहिचान बृहस्पति आगम से जो की विशालाक्ष शिव द्वारा रचित है हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥ अर्थात् - हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। अतः हिंदू शब्द के लिए बृहस्पति संहिता में लिखा है ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय: गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:। हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:। अर्थात् - ॐकार’ जिसका मूल मंत्र है और पुनर्जन्म को जो बड़ी दृढ़ता से ...